Wednesday, June 29, 2016

पति की फैमिली से कैसे करें एडजस्‍ट

How to adjust and stay positive in matrimonial home

हमारे भारतीय समाज में विवाह केवल पति-पत्‍नी के बीच का विषय नहीं है। इसमें दोनों के परिवार, रिश्‍तेदारऔर जान-पहचान वालों के बीच भी एक नये रिश्‍ते की शुरुआत होती है और विवाह-बंधन में बंधने के बाद जिम्‍मेदारियां केवल जीवनसाथी के प्रति ही नहीं होतीं इसमें वे सभी शामिल होते हैं जो किसी भी रूप से जीवनसाथी से जुड़े हैं खासकर परिवार के बुजुर्ग सदस्‍य। हमारा पारिवारिक ढांचा अभी भी बहुत हद तक पारंपरिक है संयुक्‍त परिवार परंपरा खत्‍म होते जाने के बावजूद अभी भी घर में नववधू से ये आशा की जाती है कि वह एक पारंपरिक बहू और आदर्श बहू की तरह परिवार में शामिल हो, जितना संभव हो घर के सदस्‍यों की देखभाल करे और जहां बहू कोई नौकरी या रोजगार नहीं कर रही है वहां उससे पारिवारिक जिम्‍मेदारियों का ज्‍यादा ख्‍याल रखने की अपेक्षा की जाती है जो कि स्‍वाभाविक भी है। शादी के बाद बदले हुए माहौल और परिवार के बड़ों के साथ सामंजस्‍य बिठाने में महिलाएं अक्‍सर असहज महसूस करती हैं खासतौर से व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता और उन्‍मुक्‍तता के इस दौर में और जहां पर जरूरत है थोड़े से धैर्य के साथ तालमेल कायम करने की कोशिशों की वहां गलतफहमियां बढ़ती चली जाती हैं। 



एक कहानी कुछ दिन पहले इसी विषय पर पढ़ने को मिली कि किस तरह के आचरण और नजरिये को साथ रखकर नये परिवार में रहने की शुरूआत की जानी चाहिए और यदि किसी कारण से कड़वाहट ने हमारे मन में जगह बना ली है तो उसे दूर करने की शुरूआत आज से ही कर देनी चाहिए --

एक लड़की की नयी-नयी शादी हुई और वो अपनी ससुराल में जाकर रहने लगी। ससुराल में केवल पति और उसकी बूढ़ी मां थे। शुरू-शुरू में तो बहू बनकर घर में आयी लड़की अपनी सास के सभी आदेशों का  पालन करती पर कुछ महीने बीत जाने के बाद उसे सास की टोका-टाकी बुरी लगने लगी और दोनों में खटपट शुरू हो गई। 

वह अपने पति से रोज शिकायतें करती और उधर सास उसके बुरे व्‍यवहार का ताना देती। जैसा कि अक्‍सर होता है पति की समझ में नहीं आता था कि वो किसका पक्ष ले और किसे समझााये। 

एक बार बहू गुस्‍से में अपने मायके आ गई और अपने पिता से बोली कि मैं अपनी सास को जिंदा नहीं देख सकती। उसके पिताजी वैद्य थे, उसने कहा किआप मुझे सास के भोजन में मिलाने को जहर दे दीजिए। 

उसके पिताजी ने उसे कुछ पुडि़या बनाकर दीें  और कहा कि इनमें से एक को रोज खाने में डालकर अपनी सास को दे देना। ये धीमा जहर है कुछ महीनों बाद इस जहर के असर से उसकी मौत हो जाएगी पर तुम्‍हें एक काम करना होगा जब भी सास तुमसे कुछ कहे तो तुम्‍हें चुप रहना होगा और उससे अच्‍छा व्‍यवहार करना होगा जब तक उसकी मृत्‍ुयु ना हो जाए जिससे किसी को तुम पर शक ना हो। 

बहू खुशी-खुशी होकर अपने ससुराल लौटी और उसने उसी दिन से उस जहर को सास को खाने के साथ देना शुरू कर दिया। अब वो सास के मनपसंद व्‍यंजन बनाती और उसमें जहर मिलाकर उसे खिलाती, उसकी सेवा करती और उसके साथ अच्‍छे से पेश आती साथ ही साथ मन ही मन इस बात को लेकर खुश रहती कि कुछ ही दिनों में इस सासू मां से छुटकारा मिलने वाला है। 

कुछ ही महीनों में उसकी सास के व्‍यवहार में बहुत बदलाव आ गया। वो ना तो अपनी बहू से कुछ कहती ना किसी से उसकी शिकायत करती। उल्‍टा जो मिलता उससे बहू के व्‍यवहार की तारीफ करती । घर का माहौल भी पहले से बहुत सकारात्‍मक हो गया। उसकी अपनी सास के प्रति कड़वाहट खतम हो गई और उसे लगने लगा कि उसके कामों की तारीफ करने वाला भी कोई घर में है।

तब एक दिन उसे बहुत चिंता हुई और वो अपने पिता के पास जाकर बोली कि मैं अपनी सास को नहीं मारना चाहती। आप तो वैद्य हैं आपने जो जहर मुझे दिया उसके असर को खत्‍म करने और सास की जान बचाने को कोई औषधि दीजिए।

तब उसके पिताजी ने कहा कि तुम्‍हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, मैंने तुम्‍हें कोई जहर दिया ही नहीं था। मैंने तो बस हाजमा ठीक रखने की दवा दी थी। जहर तुम्‍हारे नजरिये में भरा था जो तुम अपनी सास को मारने चली थीं। उसे बदलने की जरूरत थी और आज उसका परिणाम तुम देख रही हो। अब जाओ और खुशी-खुशी अपना जीवन बिताओ। 

image credit : theknot.com

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